Tuesday, July 11, 2017

Savan Ka Mahtav सावन का महत्व


#सावन #का #महत्व



सावन शुरू होते ही हर तरफ बम भोले और शिव का जयघोष गूंजने लगता है। लोग कांवड़ में पवित्र नदियों से जल भरकर भोले का अभिषेक करते हैं। शास्त्रों के अनुसार आषाढ़ मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी के दिन संसार का पालन पोषण करने वाले भगवान विष्णु चार महीने के लिए सोने चले जाते हैं। इस दौरान संसार के पालन की जिम्मेदारी शिव उठाते हैं अतः इस अवधि में शिव जी अपने संहारक रूप को छोड़कर सौम्य रूप में आ जाते हैं और भक्तों पर कृपा बरसाते हैं। इस मास में शिव की पूजा करने से वर्ष भर शिव की पूजा का फल प्राप्त होता है।

भगवान शिव के जलाभिषेक के लिए सावन के सोमवार का विशेष महत्व होता है | मान्यता है कि सावन के सभी सोमवार को शिव की पूजा करने पर मनोकामना पूरी होती है | सावन के पूरे महीने भक्त कांवर लेकर आते हैं और शिवलिंग पर जल चढ़ाते हैं | कहते हैं सावन मास में हरिद्वार से गंगाजल लाकर अगर शिवलिंग का जलाभिषेक किया जाए तो इससे प्रसन्न होकर शंकर भगवान अपने सेवक की हर इच्छा पूरी कर देते हैं।

सावन महीने के पहले दिन उज्जैन के बाबा महाकाल मंदिर, वाराणसी के काशी विश्वनाथ मंदिर में सुबह से ही श्रद्दालुओं का तांता लगा रहा | यहां दूर-दूर से श्रद्धालु सावन के महीने में दर्शन करने आते हैं |



क्यों किया जाता है शिव पूजन ?

प्राचीन ग्रंथों के अनुसार समुद्र मंथन के दौरान समुद्र से विष निकला था | इस विष को पीने के लिए शिव भगवान आगे आए और उन्होंने विषपान कर लिया | जिस माह में शिवजी ने विष पिया था वह सावन का माह था | विष पीने के बाद शिवजी के तन में ताप बढ़ गया | शीतलता पाने के लिए भोलेनाथ ने चन्द्रमा को अपने सिर पर धारण किया | इससे उन्हें शीतलता मिल गई | ऎसी मान्यता भी है कि शिवजी के विषपान से उत्पन्न ताप को शीतलता प्रदान करने के लिए मेघराज इन्द्र ने भी बहुत वर्षा की थी | इससे भगवान शिव को बहुत शांति मिली | इसी घटना के बाद सावन का महीना भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए मनाया जाता है | सारा सावन, विशेष रुप से सोमवार को, भगवान शिव को जल अर्पित किया जाता है |

सावन माह की विशेषता

हिन्दु धर्म के अनुसार सावन के पूरे माह में भगवान शंकर का पूजन किया जाता है | इस माह को भोलेनाथ का माह माना जाता है | भगवान शिव का माह मानने के पीछे एक पौराणिक कथा है | इस कथा के अनुसार देवी सती ने अपने पिता दक्ष के घर में योगशक्ति से अपने शरीर का त्याग कर दिया था | अपने शरीर का त्याग करने से पूर्व देवी ने महादेव को हर जन्म में पति के रुप में पाने का प्रण किया था |

अपने दूसरे जन्म में देवी सती ने पार्वती के नाम से हिमालय और रानी मैना के घर में जन्म लिया | इस जन्म में देवी पार्वती ने युवावस्था में सावन के माह में निराहार रहकर कठोर व्रत किया | यह व्रत उन्होंने भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए किए | भगवान शिव पार्वती से प्रसन्न हुए और बाद में यह व्रत सावन के माह में विशेष रुप से रखे जाने लगे |



जानें व्रत व पूजा विधि—

हिन्दू धर्म में व्रत परंपरा और देव स्मरण मानव को प्रकृति के नियम और व्यवस्थाओं से जोड़कर जीवन को सुखी और स्वस्थ्य रखने का बेहतरीन उपाय माने गए हैं। यही कारण है हर माह, तिथि व वार अनेक देवी-देवता की पूजा-उपासना को समर्पित हैं। इसी कड़ी में सावन माह व सोमवार का दिन भगवान शिव की पूजा-आराधना का विशेष काल है। सावन मास को श्रावण भी कहते हैं, जिसका अर्थ है सुनना। इसलिए यह भी कहा जाता है इस महीने में सत्संग, प्रवचन व धर्मोपदेश सुनने से विशेष फल मिलता है।

सोमवार व्रत विधि –

सोमवार व्रत में भगवान भगवान शंकर के साथ माता पार्वती और श्री गणेश की भी पूजा की जाती है। व्रती यथाशक्ति पंचोपचार या षोडशोपचार विधि-विधान और पूजन सामग्री से पूजा कर सकता है। व्रत स्त्री-पुरुष दोनों कर सकते हैं। शास्त्रों के मुताबिक सोमवार व्रत की अवधि सूर्योदय से लेकर सूर्यास्त तक है। सोमवार व्रत में उपवास रखना श्रेष्ठ माना जाता है, किंतु उपवास न करने की स्थिति में व्रती के लिए सूर्यास्त के बाद शिव पूजा के बाद एक बार भोजन करने का विधान है। सोमवार व्रत एक भुक्त और रात्रि भोजन के कारण नक्तव्रत भी कहलाता है।

सावन के पहले सोमवार की पूजा विधि –

सावन के महीने में भगवान शंकर की विशेष रूप से पूजा की जाती है। इस दौरान पूजन की शुरूआत महादेव के अभिषेक के साथ की जाती है। अभिषेक में महादेव को जल, दूध, दही, घी, शक्कर, शहद, गंगाजल, गन्ना रस आदि से स्नान कराया जाता है। अभिषेक के बाद बेलपत्र, समीपत्र, दूब, कुशा, कमल, नीलकमल, ऑक मदार, जंवाफूल कनेर, राई फूल आदि से शिवजी को प्रसन्न किया जाता है। इसके साथ ही भोग के रूप में धतूरा, भाँग और श्रीफल महादेव को चढ़ाया जाता है।

प्रात: और सांयकाल स्नान के बाद शिव के साथ माता पार्वती, गणेश जी, कार्तिकेय और नंदी जी पूजा करें। चतुर्थी तिथि होने से श्री गणेश की भी विशेष पूजा करें।

पूजा में मुख पूर्व दिशा या उत्तर दिशा की ओर रखें। पूजा के दौरान शिव के पंचाक्षरी मंत्र ॐ नम: शिवाय और गणेश मंत्र जैसे ॐ गं गणपतये बोलकर भी पूजा सामग्री अर्पित कर सकते हैं।

पूजा में शिव परिवार को पंचामृत यानी दूध, दही, शहद, शक्कर, घी व जलधारा से स्नान कराकर, गंध, चंदन, फूल, रोली, वस्त्र अर्पित करें। शिव को सफेद फूल, बिल्वपत्र, सफेद वस्त्र और श्री गणेश को सिंदूर, दूर्वा, गुड़ व पीले वस्त्र चढ़ाएं।

बेलपत्र, भांग-धतूरा भी शिव पूजा में चढ़ाएं। शिव को सफेद रंगे के पकवानों और गणेश को मोदक यानी लड्डूओं का भोग लगाएं।

भगवान शिव व गणेश के जिन स्त्रोतों, मंत्र और स्तुति की जानकारी हो, उसका पाठ करें।

श्री गणेश व शिव की आरती सुगंधित धूप, घी के पांच बत्तियों के दीप और कर्पूर से करें।

अंत में गणेश और शिव से घर-परिवार की सुख-समृद्धि की कामनाएं करें।

सावन के पहले सोमवार को शिव पूजा में भगवान शिव को कच्चे चावल चढ़ाने का विशेष महत्व है।




ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ